Jun 21, 2011

कोसी जन संवाद यात्रा जुलाई में

जनज्वार. बिहार में कोसी की भयानक त्रासदी के तीन वर्ष भी पूरे नहीं हुए कि फिर एक बार कोसी के पूर्वी तटबंध पर पानी के बढ़ते दबाव से लोग भयाक्रांत हैं। सरकार ने कुसहा बांधते समय दावा किया था कि अब 25 वर्षों तक कोई खतरा नहीं होगा। वही सरकार अब हल्ला मचा रही है कि कोसी को ऐसे खतरों से बचाने के लिए ‘मुख्यधारा’ में पायलट चैनल बनाना जरूरी है।

पायलट चैलन नहीं बना पाने का दोष बिहार सरकार नेपाल पर मढ़ रही है। सरकार द्वारा तय मानकों के मुताबिक  30 अप्रैल तक कोशी में बाढ़ निरोधक सभी काम पूरा करना होता है, क्योंकि मई से पानी बढ़ने लगता है। लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही का आलम यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 31 मई को केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर नेपाल सरकार से कोसी मामले में बात करने का अनुरोध करते हैं।

कोसी त्रासदी के बाद 9 सितंबर, 08 को राज्य सरकार ने ‘कोसी बांध कटान न्यायिक जांच आयोग’ का गठन किया था। इसे एक साल के अंदर रिपोर्ट देनी थी। अब तीन वर्ष पूरा होने को हैं। 70 लाख से ज्यादा रूपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन अब तक आयोग ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर एक भी जनसुनवाई नहीं की है। आयोग की शर्त्तें एवं जांच के बिन्दुओं को इस तरह निर्धारित किया गया है कि उसमें वर्तमान सरकार को बचाने का पहले से ही पक्का इंतजाम हो।
कुसहा बांध पीड़ित : पुनर्वास का इंतजार  

वीरपुर से बिहारीगंज तक 10 से 14 जुलाई के बीच जनसंवाद यात्रा के मुद्दे
  • बाढ़ की दीर्घकालिन समाधन के लिए जन भागीदारी निर्णायक हो
  • न्यायिक जांच आयोग अविलंब जन सुनवाई शुरू करे
  • बांध टूटने के दोषियों की सजा के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन
  • पुनर्वास प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध किया जाये
  • कोसी पुनर्निर्माण योजनाओं के चयन व निर्माण में पंचायती राज संस्थाओं एवं नागरिक संगठनों की निर्णायक भागीदारी

सच्चाई यह है कि कुसहा बांध टूटने के बाद आज तक एक भी पदाधिकारी, इंजीनियर और ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। तब के सिंचाई मंत्री आज भी बेशर्मी के साथ नीतीश सरकार के चहेते बने हुए हैं। पुनर्वास की तमाम योजनाओं में जटिल प्रक्रियाओं, सरकारी उदासीनता एवं सुस्ती से भ्रष्टाचार का रास्ता खुल गया है।  सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल दो लाख छत्तीस हजार छः सौ बत्तीस (236632) घर ध्वस्त हुए थे, लेकिन अब तक मात्र 258 मकान बने हैं और 2164 मकान अधूरे  बने हैं।  यह तो केवल एक उदाहरण है। क्षतिग्रस्त घरों का मुआवजा हो या फसल क्षति का, खेतों से बालू हटाने का मुद्दा हो या उनके सीमांकन का, इन सभी मामलों में आम आदमी और किसानों की कठिनाईयां बढ़ी हैं। मौजुदा समय में भी अनेक गांवों को जोड़ने वाले पुल, सड़कें और पुलिया क्षतिग्रस्त हैं और हल्की वारिश से ही लोगों का जीवन दूभर हो जाता है।

इतना ही नहीं राहत के तौर पर आयी योजनाओं जैसे परिजनों की मृत्यु तथा मृत पशुओं के मुआवजे की क्रूर व अव्यवहारिक प्रक्रियाओं ने लोगों के जख्मों को बार-बार कुरेदा है। स्कूल और अस्पतालों की बदतर स्थिति अभी भी सबके सामने है। लाखों लोग जो अपनी आजीविका से हाथ धो बैठे उनके लिए नई रोज़गार की योजनाएं शुरु करना तो दूर पहले से चल रही मनरेगा एवं स्वावलम्बन की योजनाएं भी भ्रष्टाचार के चलते उन तक नहीं पहुंच पा रही हैं।

जाहिर है ऐसे में सामाजिक संगठनों, कार्यकर्त्ताओं, प्रबुद्व नागरिकों, विभिन्न दलों के ईमानदार नेताओं व कार्यकर्त्ताओं का दायित्व बनता है कि पुनर्वास योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करें। सरकार के असंवेदनशील रवैये का पर्दाफाश करें तथा बाढ़ समस्या के दीर्घकालीन समाधान एवं जनपक्षीय पुनर्वास नीति के लिए पहल करें। इसी पहल को संगठित करने की दृष्टि से 10 से 14 जुलाई के बीच वीरपुर से बिहारीगंज तक एक जनसंवाद यात्रा का आयोजन ‘कोसी विकास संघर्ष समिति एवं कोशी नवनिर्माण मंच’ की ओर से किया जा रहा है, जिसमें आपकी भागीदारी पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद करेगी।



बसपा सरकार में बेख़ौफ़ गुंडई

अपराधियों को पुलिस-प्रशासन का कोई खौफ नहीं है। तभी तो दिनदहाड़े महिलाओं और बच्चियों का बलात्कार हो रहा है। कहीं खेत से किसी की लाश  मिलती है, तो कहीं बलात्कार की कोशिश में नाकाम रहने पर अपराधी लड़की की आंखें ही फोड़ देते हैं...

डॉ0 आशीष वशिष्ठ

जैसे-जैसे 2012विधानसभा चुनावों का समय नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे विपक्षी दलों के साथ ही साथ अपराधी भी उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार की परीक्षाएं ले रहे हैं। प्रदेशभर में एक के बाद एक हो रहे बलात्कार कांड ने यूपी की कानून-व्यवस्था की पोल-पट्टी खोल कर रख दी है। मायावती कानून व्यवस्था के चुस्त-दुरूस्त होने के चाहे लाख दावे करें,लेकिन बेखौफ अपराधी सरकारी आंकड़ों और दावों को सरेआम मुंह चिढ़ा रहे हैं।

तेरह मई को सरकार के चार साल पूरे होने के अवसर पर जारी पुस्तिका में माया सरकार ने प्रदेश भर में अपराधियों पर नकेल कसने और अपराध नियत्रंण के जो लंबे-चौड़े दावे किए, वो आंकड़ों की धोखेबाजी के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देते हैं। मायावती एक ओर अपनी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों के कुकृत्यों से परेशान हैं, दूसरी तरफ बेखौफ अपराधी सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं।

हाल ही में माया सरकार के दो विधायकों शेखर तिवारी और आनंद सेन को हत्या के मामले में सजा सुनाई गई है। प्रदेश के गन्ना विकास संस्थान के चेयरमैन राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त इंतिजार आब्दी उर्फ बाबी की राजधानी के चर्चित सैफी हत्याकांड में हुई गिरफ्तारी ने सरकार को एकबार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार चाहे जितनी सख्त कार्रवाई करे, लेकिन कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात ये बताते हैं कि सरकारी मशीनरी  का ध्यान कानून-व्यवस्था के बजाए लूटपाट, भ्रष्टाचार और सत्ता की सेवा में लीन है।

प्रदेश में गरीब, किसान, महिलाओं और शोषितों  की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार दुर्घटना घट जाने पर लाठी पीटने और मुआवजा देकर अपनी छवि सुधारने का काम तो करती है, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि अपराधियों को पुलिस-प्रशासन का कोई खौफ नहीं है। तभी तो दिनदहाड़े महिलाओं और बच्चियों का बलात्कार हो रहा है। कहीं खेत से किसी की लाश मिलती है, तो कहीं बलात्कार की कोशिश में नाकाम रहने पर अपराधी लड़की की आंखें ही फोड़ देते हैं।

सूबे में कानून व्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है। कन्नौज में नाबालिग लड़की से रेप की कोशिश में नाकामी पर आंख फोड़ने की घटना के 48 घंटे के भीतर प्रदेश में में छह और महिलाएं दरिंदों की हवस की शिकार बनीं। इन घटनाओं से लगता है कि यहां हर तरफ जंगलराज कायम हो गया है। पर हद तो तब हो जाती है जब पुलिस कानून व्यवस्था को सही बताते हुए मीडिया पर ही गलत खबर देकर छवि खराब करने का आरोप लगाती है। एडीजे बृजलाल ने मीडिया से कहा कि वो पुलिस की छवि लोगों के बीच खराब न करे। वहीं मुख्य सचिव अनूप मिश्र ने दिल्ली में प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और 48 घंटों की अंदर 6 बलात्कार और एक बलात्कार की कोशिश के बारे में पूछे गए सवाल को हल्के में लेते हुए ‘ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं’और ‘प्रदेश में कानून व्यवस्था सामान्य है’ कहकर सरकार का पक्ष रखा।   

कन्नौज के गुरपुरवा गांव में एक 14 साल की लड़की से बलात्कार की कोशिश की गई और नाकाम रहने के बाद उसकी आंखों पर घातक वार किए गए। आरोपी कुलदीप और निरंजन यादव उसे रास्ते में रोककर पहले खेतों में ले गए, जहां उसे घसीटा और फिर बलात्कार की कोशिश की। लड़की द्वारा विरोध करने पर उसकी दोनों आंखों पर चाकू से वार किया। बाद में आरोपी बेहोश लड़की को खेत में ही छोड़कर फरार हो गए। गांववालों को जानकारी मिलने के बाद पीड़ित लड़की को अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों के मुताबिक लड़की की एक आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई है और शायद ही सामान्य स्थिति में आ पाएगी। उसे इलाज के लिए कानपुर भेज दिया गया।

कन्नौज की घटना के बाद एटा जिले के निधौली कलां थाना क्षेत्र के सभापुर गांव में एक दलित महिला से पांच लोगों ने गैंगरेप किया। गैंगरेप करने के बाद महिला को जला दिया गया। गंभीर रूप से झुलसी महिला की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। इस कांड में लिप्त सभी आरोपी फरार हैं। 20 जून की सुबह तैंतीस वर्षीय अनारकली के घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार किया गया।

इसी तरह गौंडा के करनैलगंज में एक नाबालिग दलित किशोरी से गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई। हत्या के बाद बलात्कारी उसके शव को गन्ने के खेत में फेंककर भाग गए। जिले के करनैलगंज के मसौलिया गांव के निवासी राजेश की चौदह वर्षीय बेटी 16जून से ही लापता थी। खेत पर जाने के बाद वह वापस नहीं लौटी। रविवार को गन्ने की खेत से उसका शव बरामद हुआ। उसके साथ भी गैंगरेप होने की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने कहा है कि पोस्टमार्टम के बाद सच सामने आएगा। राजेश ने तीन लोगों के खिलाफ थाने में तहरीर दी है।

फिरोजाबाद के सिरसागंज में भी एक 15 साल की नाबालिग लड़की के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया। मीना बाजार इलाके में लड़की के कथित प्रेमी शानू नाम के लड़के ने अपने दोस्त गट्टू के साथ मिलकर उसका बलात्कार किया। पुलिस ने शानू को गिरफ्तार कर लिया तथा दूसरे आरोपी की तलाश जारी है। बस्ती जिले में 18साल की दलित लड़की के साथ एक युवक ने रेप किया। बताया जा रहा है कि उक्त युवक ने बंदूक की नोक पर लड़की का रेप किया। अपने परिवार के साथ स्टेशन से घर जा रही कानपुर के कर्नलगंज की एक युवती को चार गुंड़ों ने रावतपुर चौराहे से अगवा कर लिया। उसे एक होटल में रखा गया। रविवार की सुबह लड़की सफाई करने वाले लड़के की मदद से किसी तरह भाग निकली।

लड़की के परिजनों की शिकायत पर हरबंश मोहाल पुलिस ने होटल मैनेजर को हिरासत में ले लिया। पुलिस का कहना है कि इस मामले में गैंगरेप की पुष्टि नहीं हुई है। युवती ने बताया कि वो भीड़ की वजह से परिवार से बिछड़ गई थी,जिसके बाद उसको अगवा किया गया। युवती के परिजनों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी रिपोर्ट लिखवाने जाने पर कहा कि कहीं चली गई होगी। बस्ती के रानीपुर बेलादी गांव में एक युवक ने बंदूक की नोंक पर बलात्कार किया। पुलिस ने आरोपी सत्ती सिंह के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर लिया है और आरोपी की तलाश की जा रही है। राज्य में पिछले दिनों अपराध की बढ़ती घटनाओं पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने यूपी की सत्तारुढ़ बसपा सरकार पर अपराधियों की मदद करने का आरोप लगाया है।
इन घटनाओं से तो यही लगता है लगभग पूरा सरकारी अमला लूटपाट और भ्रष्टाचार में लिप्त है। पुलिस प्रशासन अपने विवेक को एक किनारे रखकर सत्ताधारी दल के एजेंट की भांति काम कर रहा है। कहीं डीआईजी स्तर का अधिकारी किसी प्रदर्षनकारी को जूते से मसलने में शान समझता है,तो कहीं सीओ और एसपी स्तर के अधिकारी अपनी नेम प्लेट छुपाकर अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक डंडे बरसाना ही अपनी डयूटी समझते हैं।

मायावती ने चुनावों के मद्देनजर प्रशासनिक अधिकारियों के व्यापक स्तर पर फेरबदल किया है, ताकि चुनावों के समय उनके चहेते पालतू अधिकारी सरकारी एजेंट की भांति सत्ताधारी दल की चाकरी कर सके। निजी स्वार्थों और प्रमोशन के भूखे अधिकारी अपनी जान पर खेलकर बहनजी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। सत्ता की चाकरी और चापलूसी के चलते प्रदेश की कानून व्यवस्था चरमरा कर रह गई है। अपराधियों को ये भलीभांति ज्ञान है कि जब प्रदेश में सत्ताधारी दल के विधायक और मंत्री अपराध में संलिप्त है तो उनको पूछने वाला कौन है अर्थात चोर चोर मौसेरे भाई। मायावती सख्त कानून और प्रषासन के चाहे जितने भी दावे करे लेकिन जमीनी सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।

भारी जनदबाव और विपक्षी दलों के चिल्लाने पर सरकार की आंख खुलती है और फिर समूचा सरकारी अमला झाडपोंछ और डैमेज कंट्रोल में लग जाता है। सरकार घटना के कारणों को जानने की बजाए लीपापोती में अधिक विश्वास करती है। चाहे किसी भी घटना का इतिहास उठाकर देख लीजिए प्राथमिक स्तर पर सरकारी अमले की नाकामी ही दिखायी देती है। भट्ठा-पारसौल की घटना हो या फिर शीलू  बलात्कार कांड, सरकार पहले पहल घटना को छुपाने की ही कोशिश में लग रहती है। मीडिया, जनता और विपक्षी दलों कें हस्तक्षेप के बाद सरकार जाग पाती है।

मुख्मंत्री के मातहत बहनजी को उनके मातहत चाहे जो भी विकास और अपराध नियंत्रण की तस्वीर दिखा रहे हों लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश में गरीब, किसान और महिलाएं अत्यधिक दुःखी और प्रताडित हैं लेकिन सरकारी अमला कागजी कार्रवाई और फर्जी आंकड़ेबाजी में मशगूल है।


 स्वतंत्र पत्रकार  और उत्तर प्रदेश के राजनितिक -सामाजिक मसलों   के जानकार .